पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जैसा अर्थशास्त्री ना था ना है
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जैसा अर्थशास्त्री ना था ना है

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जी 1985 के राजीव गांधी जी के शासनकाल में मनमोहन सिंह जी को भारतीय योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इस पथ पर उन्होंने निरंतर 5 वर्षों तक कार्य किया, जबकि 1990 में यह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बनाए गए। जब पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मनमोहन सिंह को 1991 में अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित करते हुए वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया। इस समय डॉ मनमोहन सिंह ना तो लोकसभा और ना ही राज्यसभा के सदस्य थे।लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना आवश्यक होता है। इसलिए उन्हें 1991 में राज्यसभा के लिए चुना गया था।मनमोहन सिंह जी ने आर्थिक उदारीकरण के उपचार के रूप में प्रस्तुत किया और भारत अर्थव्यवस्था को विश्व बाजार के साथ जोड़
दिया था। डॉ मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया था। लाइसेंस एवं परमिट गुजरे जमाने की चीज हो गई । निजी पूंजी को उत्साह करके रुकना और घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियां विकसित की। नई अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी तब पीवी नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा था विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोग से सावधान कर रहा था लेकिन श्री राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा यकीन रखा मात्र 2 वर्ष बाद ही आलोचकों के मुंह बंद हो गए और उनकी आंखें फैल गई उदारीकरण के बेहतरीन परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में नजर आने लगे थे और इस प्रकार एक गैर राजनीतिक व्यक्ति जो अर्थशास्त्र का प्रोफेसर था। का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ ताकि देश की बिगड़ी अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।