आधुनिक राजनीति के माहिर खिलाड़ी भूपेश बघेल...

आधुनिक राजनीति के माहिर खिलाड़ी भूपेश बघेल...

   लेखक:- ब्रजेश सतपथी

 (राजनैतिक विश्लेषक व चिंतक हैं )

      जोगी परिवार में दशकों से जाति का मामला राज्य सरकार में तो कभी अदालत में लंबित रहा जिसे भूपेश सरकार ने लंबित को निलंबित कर इस पूरे रहस्य के मिथक को ही आज तोड़ दिया। इस तरह के घटना का वाक्या इसके पूर्व तब आया था जब एक टेप कांड के उजागर होने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष रहते भूपेश बघेल ने कांग्रेस के तमाम नेताओं के सोच के विपरित जोगी पिता-पुत्र को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखाने सफलता हासिल की थी। आज फिर से एक बार भूपेश बघेल ने अपने दोस्तों और दुश्मनों को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वे उन्हें हल्के में न लें।

भूपेश बघेल अपने राजनैतिक करियर की शुरूआत छत्तीसगढ़ के छोटे से कस्बे पाटन क्षेत्र से की थी। तब यह किसी ने सोचा नहीं था कि यह राजनेता एक दिन इसी प्रदेश का मुख्यमंत्री बन कर अपने सकारात्मक कार्यप्रणाली से ऐसा कुछ करेगा जिसका कांग्रेस पार्टी खुद शुक्रगुजार हो जाएगी।अपने राजनैतिक जीवन में जोड़-तोड़ जैसे राजनीति से दूर इस राजनेता के अतीत को जब खंगाला जाता है तो देखने यही मिलता है कि इनके पूरे राजनैतिक करियर में कभी भी षड़यंत्र या दुर्भावना से ग्रसित कोई काम राजनीतिक रूप से नहीं हुआ। बल्कि भूपेश बघेल पार्टी में कई चुनौतियों को अपने जीवन में स्वयं सुलझा कर आगे की राह बढ़ते चले गए।

इनकी इसी खूबी को देख राहूल गाँधी ने झीरम घाटी की घटना के बाद जब प्रदेश में नेतृत्व की संकट के बीच गांधी परिवार के करीबी रहे अजीत जोगी जैसे कद्दावर नेता को किनारे कर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की कमान भूपेश बघेल के हांथों सौंप दी।पर उनका यह निर्णय जोगी को नागवार गुजरा और वे इस मौके की तलाश में जुटे रहे कि भूपेश बघेल के नेतृत्व को हाईकमान की नजर में कैसे गिराया जाए। इसी भावना को फलीभूत करने अंतागढ़ के उपचुनाव में घोषित पार्टी प्रत्याशी की ही नाम वापसी करा कर भूपेश बघेल के नेतृत्व को चुनौती दे दी। 

इस घटना में पार्टी उम्मीदवार रहे मंतूराम पवार को एक षड़यंत्र के तहत कांग्रेस पार्टी में रहते हुए भी अजीत जोगी एवं उनके पुत्र, तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और सरकार में प्रभावशाली कुछ लोगो के साथ  मिलीभगत कर एक सोची समझी साजिश के तहत नाम वापसी के अंतिम दिन चुनाव में कांग्रेस पार्टी की रिक्तता कर छत्तीसगढ़ सहित दिल्ली तक की राजनीति में उथल-पूथल मचा दी थी। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह कैसे हो गया। समय के चलते इस पूरे षड़यंत्र का जब आॅडियो टेप आया तो वह कांग्रेस नेताओं के सोच के अनुकूल था। तभी प्रदेश अध्यक्ष के नाते भूपेश बघेल ने तमाम अटकलों को विराम देते हुए जोगी परिवार को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखा कर एक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ के साथ-साथ अनुशासन प्रिय एक सख्त नेता होने का परिचय दिया था।

साल 2018 में सम्पन्न हुए छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनाव में भूपेश बघेल की नेतृत्व वाली कांग्रेस की आँधी में भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ जोगी की जनता कांग्रेस का भी प्रदर्शन निराशा जनक रहा। तब भूपेश बघेल ने कहा था, अजीत जोगी का कांग्रेस पार्टी से जाना उनके लिए वरदान बन गया है। बावजूद इस समय उनके जाति का मामला छत्तीसगढ़ में विवादों के बीच जीवित रहा। एक तरह से कहा जाए तो उनका ईसाइयत होना ही उनके लिए मुसीबत का एक सबब था। उनकी जाति को लेकर शुरू से ही विवाद रहा छत्तीसगढ़ में जोगी जिस परिवार से आते हैं वह दरअसल अनुसूचित जाति में है। इसके बाद भी अजीत जोगी के पास आदिवासी होने का प्रमाण पत्र था, परन्तु विवाद इस बात को लेकर रहा कि यह प्रमाण पत्र गलत तरीके से लिया गया है। जिससे कि वे अनुसूचित जनजाति से होने का फायदा ले सकें और भविष्य में भी बच्चों को इसके आरक्षण का फायदा मिल सके और हाल ही में इसी का फायदा लेने उनके पुत्र अमित मरवाही में होने जा रहे उपचुनाव में चुनाव लड़ने की ज़िद कर रहे थे।

नियम तो यह है कि अनुसूचित जाति का कोई व्यक्ति यदि धर्म परिवर्तन कर ले तो वह आरक्षण की पात्रता खो देता है। बावजूद यह मामला आज भी  न्यायालय में लंबित है।जोगी जी को जाति के मामले में हाई-कोर्ट से भी दो-दो बार उनके पक्ष में राहत मिली थी, परन्तु उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि दोनों को तकनीकी रूप से फैसला नहीं कहा जा सकता और इसकी जाँच होनी चाहिये, जो छत्तीसगढ़ सरकार में रमन सिंह के मुख्यमंत्री रहते 15 वर्षों तक लंबित रहा या कहें सरकार ने इसे लंबित रखना ही उचित समझा।

अजीत जोगी के मृत्यु के पश्चात् मरवाही विधानसभा में होने जा रहे उपचुनाव में जब जोगी परिवार चुनाव समर में कुदने की कोशिश की तो डेढ़ दशकों से लंबित रहे जोगी परिवार के जातिय मामले को भूपेश बघेल ने एक झटके में निलंबित कर बता दिया कि बगैर हल्ला किए कार्यवाही कैसे की जाती है। भले ही अब भी यह मामला न्यायालयीन चक्रव्यूह में घूमते रहेगा। बहरहाल कभी खत्म न होने वाला मामला। जिस तरह से दशहरा में हर साल जलाये जाने वाला रावण का अंत कभी नहीं हुआ ठीक उसी तरह बन चुका जाति के इस मुद्दे का आखिरकार आज अंत हो ही गया।