मोटिवेशनल टीचिंग: सरकारी स्कूल में शिक्षा के पारंपरिक ढर्रे को बदला शिक्षिका नें.. नए छोटे इनोवेशन से बच्चों को करती प्रेरित.. पढ़े इनसाइड स्टोरी गुंडरदेहीTIMES

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मोटिवेशनल टीचिंग: सरकारी स्कूल में शिक्षा के पारंपरिक ढर्रे को बदला शिक्षिका नें.. नए छोटे इनोवेशन से बच्चों को करती प्रेरित.. पढ़े इनसाइड स्टोरी गुंडरदेहीTIMES

वामन साहू /डूलेश्वर डड़सेना

शिक्षक चाह जाए तो खुद की काबिलियत से सरकारी स्कूल में शिक्षा के पारंपरिक ढर्रे को बदलकर बच्चों में पढ़ाई के साथ उनकी कलाओं को भी निखार सकता है। बेकार चीजों को एकत्रित कर उसे साजो-सामान व उपयोगी चीजें बनाकर न सिर्फ बच्चों को दिखाना बल्कि बच्चों को भी यह कलाकारी सिखाने की काबिलियत शिक्षक में ही हो सकती है। ऐसा ही कर दिखाया है गुंडरदेही विकासखंड के मटिया(अ) मिडिल स्कूल की एक शिक्षिका ने । 

यह शिक्षिका बच्चों के लिए अब जरुरत बन गई है। बच्चे जितने देर स्कूल में रहते हैं इस शिक्षिका के इर्द-गिर्द बस्तर सरगुजा के साथ स्थानीय पारंपरिक कलाओं को सीखने की कोशिश करा रहे हैं। कुछ बच्चे तो पारंगत भी हो गए हैं। अनुपयोगी चीजों से सामग्री तैयार कर उन्हें उपयोगी कैसे बनाया जा सकता है यह हुनर शिक्षिका भावना सिंह बच्चों को हर रोज पढ़ाई के साथ-साथ सिखा रही हैं।

वर्तमान समय में शिक्षक-शिक्षिकाओं पर कई सवाल शिक्षा व्यवस्था को लेकर खड़े किए जा रहे हैं। इन सवालों के बीच कुछ ऐसे शिक्षक-शिक्षिकाएं हैं जो अपनी जिम्मेदारी को पूरी इमानदारी के साथ निवर्हन कर रहे हैं। अपने स्कूल के बच्चों का न सिर्फ स्कूलों में बल्कि स्कूल से बाहर रहने पर भी ख्याल रखना और उनके लिए चीजें एकत्रित करने वाले शिक्षक-शिक्षिकाएं भी मौजूद हैं। 

गुंडरदेही विकासखंड के मटिया(अ) मिडिल स्कूल की शिक्षिका पुष्पा चौधरी ने स्कूल में ऐसा नवाचार शुरु किया है जिससे न सिर्फ बच्चों का पढ़ाई में मन लग रहा है बल्कि वे अलग-अलग तरह की कलाएं भी सीख रहे हैं। बच्चों में रचनात्मक गुणों का विकास हो रहा है। शिक्षिका भावना सिंह ने बच्चों को कबाड़ जैसी चीजों से उपयोगी सामग्री बनाना सिखाना शुरु किया। देखते ही देखते बच्चों में ऐसा हुनर देखने को मिला कि अब बच्चे भी कबाड़ से तरह-तरह की सामग्री बनाने लगे हैं। न सिर्फ सामग्री बल्कि बच्चों की लेखन शैली को सुधारने ब्लैक बोर्ड के साथ दीवार व जमीन पर लिखने के तरीके बता रही हैं। बच्चों की लेखन शैली भी इससे सुधर रही है। 

★ सांस्कृतिक आयोजन में भी बच्चे आगे -  बच्चों में कबाड़ से जुगाड़ कर तरह-तरह की सामग्री बनाने के गुर सिखाने के साथ सांस्कृतिक आयोजन में भी बच्चों को पारंगत किया जाता है। बच्चों में गीत गायन, नृत्य जैसी विधाओं के लिए भी रुचि जागृत करने का काम शिक्षिका कर रही हैं। अब तो बच्चों की कापियों में न सिर्फ पठन-पाठन की चीजों के साथ सरगुजा की कलाएं व अन्य रचनात्मक चीजें भी नजर आने लगी हैं।

★ शिक्षिका के इस पहल से शिक्षिका पुष्पा चौधरी बेकार की कबाड़ मानी जानी वाली वस्तुएं आकर्षण बन चुके हैं। कपड़े में गोदना आर्ट, कपड़े में बारहखड़ी, पुआल का थैला, अखबार का पेन स्टेंड, फोटो फ्रेम, बॉटल से गिलास-पेन स्टैंड, फ्लावर पॉट, बॉटल से टेबल निर्माण, आलमारी, पेंट से फूल बनाना, रद्दी पेपर से करमा नृत्य करते हुए महिला-पुरुष, ढोलक, झाडू, कार्ड शीट से गुड्डा, गुड़िया, फ्लावर पॉट, रद्दी पेपर से कटोरी, गिलास, डलिया, बाईसकोप, रद्दी कार्ड से डोली निर्माण कर स्कूल में सजाया गया है। यह सामग्री स्कूल के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है।


शिक्षिका पुष्पा चौधरी ने गुंडरदेहीTIMES से चर्चा करते हुए कहा कि वे जिस परिस्थिति में शिक्षिका बनी और स्लम एरिया के बच्चों से भरे स्कूल में पहुंची उन्हें बच्चों की जरुरतें महसूस हुई। हर बच्चा पढ़ना चाहता है। उसे स्कूल में पढ़ाई के साथ खेलकूद और रचनात्मक चीजों की ओर ले जाने पर ही वह पढ़ाई में मन लगा सकेगा। रायपुर में आयोजित एक प्रशिक्षण में गईं जहां कबाड़ से जुगाड़ कर बच्चों को पढ़ाने के तरीके बताए जा रहे थे। पहले से ही उन्हें इन सब चीजों में रुचि थी और वापस लौटते ही प्रयोग शुरु किया और बच्चे भी सीखने लगे। अब तो हर रोज नई-नई चीजें बनाकर बच्चों को सिखाना उनकी आदत में शामिल है ।